
गीता और पिंकी दोनों लगभग हम उम्र है, दोनों के बिच बड़ी जमती है गीता और पिंकी रांची जैसे बड़े शहर मे अकेले रहती है, न कोई उनका आगे है और न कोई उनका पीछे उन्हें यह भी पता नहीं की माँ की ममता और पिता का प्यार आखिर होता क्या है। मैंने उन दोनों को एक सप्ताह पहले रांची के फिरायालाल चौक के नजदीक लगने वाले छोले भठूरे की दूकान मे देखा,तो अचानक से हिंदी फिल्मो की एक मशहूर डायेलोंग याद आ गयी ,भूख कुछ भी करने पर मजबूर कर देती है.सचमुच उस वक़्त गीता और पिंकी की हालत भी लगभग ऐसी ही थी,छोले भठूरे वाला अभद्र भाषा मे उन दोनों बच्चियों को जल्दी से प्लेटे साफ़ करने को केह रहा था. दरअसल पिंकी और गीता अपनी पेट की आग बुझाने के लिए रांची जैसे बड़े शहर को पैदल ही नाप लेती है,जहा -जहा ठेले मिलते है वहा -वहा वो दोनों अपना ठिकाना बना लेती है. पेट भरने के लिया वो दोनों उन ठेलो मे प्लेटे साफ़ करती है,उसके बदले गीता और पिंकी को ठेले मे बने खाने के सामन से एक आद प्लेटे मिल जाती है,और कुछ दस पांच रूपये भी इसके साथ -साथ मुफ्त की कुछ गालिया भी गीता और पिंकी के नसीब मे आ जाती है. गीता और पिंकी को देख कर मे अपने आप को शायद नहीं रोक पायी मेरे मित्र के लाख मन करने पर की क्या सड़क की लड़की से बात करोगी मैंने गीता और पिंकी से बात की.
बकौल गीता हम दोनों बहने हर रोज ऐसे ही ठेलो पर जा जा कर अपनी पेट भर लेते है इसी बहाने कुछ पैसे भी बन जाते है जो जरूरत पड़ने पर अपने काम आती है। यहाँ कोई अच्छा नहीं है सब लोग हमे अब तो घूर घूर कर देखते है हम जहा जाते है वहा हमे अब डर लगता है लेकिन क्या करे पेट भरने के लिए ये सब तो सुनना ही पड़ेगा और अब तो ये सब हम दोनों की किस्मत ही बन गयी है.
बकौल गीता हम दोनों बहने हर रोज ऐसे ही ठेलो पर जा जा कर अपनी पेट भर लेते है इसी बहाने कुछ पैसे भी बन जाते है जो जरूरत पड़ने पर अपने काम आती है। यहाँ कोई अच्छा नहीं है सब लोग हमे अब तो घूर घूर कर देखते है हम जहा जाते है वहा हमे अब डर लगता है लेकिन क्या करे पेट भरने के लिए ये सब तो सुनना ही पड़ेगा और अब तो ये सब हम दोनों की किस्मत ही बन गयी है.
यह पूछने पर की सरकार कुछ नहीं करती तो पिंकी ने कहां हम ना पढ़े है ना ही कुछ सरकार के बारे मे जानते है,हमारे लिए कौन क्या करेगा बस ठीक है हमे तो ऐसे ही मजा आता है, कहा सपने देख सकते है हम, बेहतर होगा की हम दोनों जैसे जीते है वैसे ही जिए बाकी मालुम नहीं क्या होगा ?
यह पूछने पर की पढने का दिल नहीं करता, गीता कहती है हा हमे भी पढने का मन तो करता है, पर कैसे पढ़े? कौन पढ़ायेगा हमे? तब बहुत मन करता है जब स्कूल बस मे बच्चो को जाते हुए देखती हूँ तब ऐसा लगता है के हम भी ऐसे ही स्कूल जाते तो कितना अच्छा होता. आजकल वर्णमाला ज्ञान की एक किताब तो ख़रीदा है लेकिन समझ नहीं पाते, हम दोनों का पूरा वक़्त ऐसे ही चला जाता है पर नहीं समझ मे आता. अब तो हमारे लिए पढना सपने जैसा है.
nice
जवाब देंहटाएंअब कहाँ है ये बच्चियां? आप जानकारी देंगे प्लीज़.
जवाब देंहटाएंकम से कम किसी सुरक्षित स्थान ,घर तक तो इन्हें पहुंचाने मे मैं इनकी कुछ मदद कर सकूं.
nice post..
जवाब देंहटाएंPlease visit my blog..
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